छत पर रोज मैं जाती हूं... Hindi Kavita for Children

छत पर रोज मैं जाती हूं... Hindi Kavita for Children

छत पर रोज मैं जाती हूं
खेलकूद कर आती हूं
पौधे नए से दोस्त बने हैं
देख उन्हें मुस्काती हूं

भिंडी बैंगन और टमाटर
दोस्त मिले हैं सभी बराबर
लेमनग्रास का हरा सा पौधा
चाय बनेगी नीचे लाकर

छत पर मेरे अब से पहले
फैले हुए थे ढेर से गमले
खेल नहीं पाती थी तब मैं
पाइप के आने से पहले

पाइप खड़े हैं साइड में
जगह मिली है वाइड में
फूल महकते पाइप से ही
फ्यूचर जैसे ब्राइट हैं।

खाना रोज मैं खाती हूं
सब्जी छत से लाती हूं
हरि स्वस्थ व ताजी सब्जी
अपने ही छत पे उगाती हूं

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.


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